# ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं/लक्षण (British Samvidhan ki Pramukh Visheshatayen)

ब्रिटिश संविधान की प्रमुख विशेषताएं :

ब्रिटिश संविधान अन्य देशों के संविधानों से विभिन्न लक्षणों में भिन्न है। यह देश के कर्णधारों द्वारा निश्चित स्थान व समय में निर्मित नहीं हुआ, वरन् समय-समय पर विभिन्न आवश्यकताएँ उत्पन्न हुईं और उन्हीं के आधार पर संविधान का विकास होता गया। ब्रिटेन के लोगों ने सर्वप्रथम यह खोज की कि किस प्रकार राज्य प्रजातान्त्रिक प्रणाली के आधार पर चलाया जा सकता है। यही कारण है कि हम संविधान की विशेषताओं का वर्णन करने को उत्सुक हैं। ब्रिटेन के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. अलिखित संविधान

ब्रिटिश संविधान का स्वरूप अलिखित है। यहाँ ‘इंग्लैण्ड का संविधान‘ नाम का कोई सरकारी प्रलेख उपलब्ध नहीं है। जिन विधियों और सिद्धान्तों के आधार पर ब्रिटेन में शासन चलता है, वह ब्रिटिश समाज के रीति-रिवाजों, परम्पराओं आदि पर आधारित हैं। हाँ, इनमें से कुछ को संसद ने पारित कर अधिनियमों का रूप दे दिया है, जैसे- महाधिकार पत्र (1215), अधिकारयाचनापत्र (1618), संसद अधिनियम (1911) जो 1949 ई. में संशोधित किया गया आदि, ब्रिटिश संविधान के प्रमुख अंग हैं। किन्तु क्योंकि ब्रिटिश संविधान का अधिकांश भाग अलिखित है, इसलिए इसको अलिखित संविधान कहा गया है। संविधान के अलिखित होने के कारण ही टॉकाबिली तथा पेन (Paine) आदि विद्वानों ने यह मत प्रतिपादित किया कि “इंग्लैण्ड का संविधान है ही नहीं।”

2. विकसित संविधान

ब्रिटिश संविधान विकसित है, निर्मित नहीं। मुनरो के शब्दों में, “ब्रिटिश संविधान का निर्माण करने के लिए कभी कोई संविधान सभा का गठन नहीं किया गया। यह तो प्राणधारियों की भाँति पनपा है और युग-युग में उन्नति की है।” संविधान के विकास में एक अविच्छिन्न निरन्तरता पायी जाती है। इसी कारण यह कथन प्रचलित है कि “यह अवसर और बुद्धि की सन्तान है।” जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु यह नया रूप धारण करता रहा है। यह संविधान सुस्पष्ट नक्शे के अनुसार निश्चित समय पर बनाये गये भवन से सर्वथा भिन्न है, यह तो एक गढ़ के समान है जिसमें प्रत्येक पीढ़ी ने बुर्ज, छज्जा, अटारी जोड़ दी है। भारत, अमेरिका, सोवियत यूनियन आदि के संविधानों की क्रमशः 1950, 1736, 1887 तिथियों की तरह ब्रिटिश संविधान की कोई निर्माण तिथि नहीं है।”

3. अभिसमयों/परंपराओं पर आधारित

ब्रिटिश संविधान अभिसमयों या परम्पराओं पर आधारित है। उन अभिसमयों को संसद द्वारा पारित कानूनों के समान ही मान्यता एवं आदर प्राप्त है। अभिसमय के कुछ मुख्य उदाहरण हैं- सम्राट मन्त्रिमण्डल की बैठकों में सम्मिलित नहीं होगा, सम्राट को संसद द्वारा पारित कानूनों पर हस्ताक्षर करने ही होंगे, लॉर्ड सभा के न्यायसभा के रूप में कार्य करते समय केवल विधि सदस्य ही भाग लेंगे आदि-आदि। ब्रिटिश संविधान अलिखित परम्पराओं पर भी चलता है। संविधान एक हड्डियों के ढाँचे के समान है; रीति-रिवाज व परम्पराएँ माँस और रक्त के समान हैं। अभिसमय रिक्त स्थानों की पूर्ति करते हैं।

4. संसदीय शासन प्रणाली

ब्रिटिश संविधान की संसदीय शासन प्रणाली है। इसका अभिप्राय यह है कि कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी है। इसमें दूसरी बात यह है कि ब्रिटेन में राजा संवैधानिक अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है और प्रशासन कैबिनेट के द्वारा चलाया जाता है। कैबिनेट तब तक ही पद पर बनी रह सकती है जब तक कि इसको संसद का विश्वास प्राप्त है। मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध संसद द्वारा अविश्वास का प्रस्ताव पारित किया जायेगा तो उसे त्यागपत्र देना होगा और उसका स्थान मन्त्रिमण्डल लेगा जिसको संसद का विश्वास प्राप्त है। फ्रांस, भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड आदि देशों ने ब्रिटेन की संसदात्मक शासन प्रणाली का अनुसरण किया।

5. संसद की सर्वोच्चता

ब्रिटेन में संसद कानूनी रूप से सर्वोच्च तथा शक्तिमान है। वह पूरे देश के लिए किसी भी विषय पर कानून बना सकती है, ब्रिटेन में संविधान संशोधन विषयक को भी साधारण विधेयक की भाँति संसद सामान्य बहुमत से पारित कर सकती है। ब्रिटेन में व्यायिक समीक्षा की पद्धति नहीं है। सर एडवर्ड कोक के शब्दों में, “उसकी (संसद की) शक्ति तथा क्षेत्राधिकार को किसी कारण अथवा व्यक्तियों द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता।” डी. लाने के शब्दों में, “ब्रिटिश संसद पुरुष को स्त्री तथा स्त्री को पुरुष बनाने के अतिरिक्त और सब कुछ कर सकती है।”

6. सिद्धान्त और व्यवहार में अन्तर

अन्य देशों में संवैधानिक प्रावधानों में तथ्य भरे रहते हैं, किन्तु ब्रिटेन के सिद्धान्त और व्यवहार में अन्तर है। मुनरो का कथन है कि “इंग्लैण्ड में कोई बात जैसी दिखाई देती है, वैसी नहीं है और जैसी है, वैसी दिखाई नहीं देती।” जैसे- सिद्धान्त में रानी को देश की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका तथा अन्य सम्बन्धी सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं। सब अधिकारी, प्रधानमन्त्री और अन्य मन्त्रियों को मिलाकर रानी के द्वारा नियुक्त किये जाते हैं और उसी की इच्छानुसार अपने पद पर बने रह सकते हैं, किन्तु व्यवहार में रानी का प्रशासन पर कोई नियन्त्रण नहीं है। उसकी सब शक्तियों को (अब क्राउन को) एक संस्था का रूप प्रदान कर दिया गया है। रानी अब केवल संवैधानिक अध्यक्ष हैं।

7. विधि का शासन

ब्रिटेन के संविधान की अन्य विशेषता यह है कि वहाँ पर विधि का शासन है जिसका अर्थ है कि ब्रिटेन में विधि सर्वोच्च है। प्रो.डायसीने विधि में निम्नलिखित तीनों बातों का समावेश किया। प्रथम, किसी भी व्यक्ति को बिना अपराध के दण्डित नहीं किया जा सकता। द्वितीय, कोई भी व्यक्ति कानून से परे नहीं है। प्रधानमन्त्री से लेकर सिपाही तक सभी कानून की दृष्टि में समान हैं। तृतीय, विधान के मुख्य-मुख्य सिद्धान्त न्यायालयों द्वारा निश्चयों और निर्णयों के परिणाम हैं। ब्रिटेन में नागरिक स्वतन्त्रताएँ संविधान के ऊपर हैं। संक्षेप में, ब्रिटेन में राजकीय अधिकारियों और साधारण नागरिकों के बीच कोई अन्तर नहीं किया जाता है।

8. एकात्मक शासन प्रणाली

भारत और अमेरिका की तरह ब्रिटिश संविधान संघीय नहीं है, बल्कि एकात्मक है। कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायिक आदि सभी शक्तियाँ केन्द्र सरकार के हाथों में केन्द्रित हैं और ब्रिटिश संसद कुछ भी करने में सक्षम है। वैसे वे सुविधा की दृष्टि से देश को स्थानीय क्षेत्रों या घटकों में बाँट दिया गया है, किन्तु वे क्षेत्र संघीय सरकारों के अवयवी राज्यों के समान शक्तिसम्पन्न एवं स्वायत्त नहीं हैं।

9. सीमित राजतन्त्र

ब्रिटेन सीमित राजतन्त्र है। रानी के अधिकारों का प्रयोग संसद के प्रति उत्तरदायी मन्त्रियों द्वारा किया जाता है। बिना मन्त्रिमण्डल की सहमति या राय के रानी कुछ नहीं कर सकती। आग के शब्दों में, “इंग्लैण्ड की सरकार अन्ततः सिद्धान्त में पूर्ण राजतन्त्र है, स्वरूप में एक संवैधानिक सीमित राजतन्त्र है और वास्तविकता में एक प्रजातन्त्र गणतन्त्र है।” इसलिए यह वास्तविकता में प्रजातान्त्रिक संविधान है।

10. लोकतान्त्रिक शासन

जैसा ऑग ने कहा है कि वास्तविकता में ब्रिटेन का शासन प्रजातान्त्रिक है, सही है। यहाँ की प्रजातान्त्रिक पद्धति विश्वविख्यात है। संसद का प्रथम सदन हाउस ऑफ कॉमन पूर्णतया निर्वाचित संस्था है। निर्वाचन सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होते हैं। नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं। ब्रिटेन का प्रत्येक नागरिक अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतन्त्र है।

11. पित्रागत सिद्धान्त

एक विचित्र बात यह है कि इंग्लैण्ड जैसे प्रजातान्त्रिक देश में राजा और लॉर्ड सभा के रूप में पित्रागत सिद्धान्त अभी भी प्रचलित है। आज भी राजा का पद पैतृक है और लॉर्ड सभा भी मुख्यतः वंशानुगत आधार पर ही गठित की जाती है। इस प्रकार ब्रिटिश संविधान में प्रगतिवादी और प्रक्रियावादी दोनों तत्त्वों का समावेश देखने को मिलता है।

12. लचीला संविधान

ब्रिटिश संविधान में संशोधन करने का तरीका बहुत ही सरल है। एक साधारण विधेयक की तरह से संसद के साधारण बहुमत द्वारा ही ब्रिटिश संविधान में संशोधन किया जा सकता है। संसद जब भी चाहे संविधान में परिवर्तन कर सकती है। यह विधायनी और संवैधानिक सभा दोनों ही कर सकती हैं। लॉर्ड ब्राइस का कथन है कि,- “संविधान के ढाँचे को बिना तोड़े ही आवश्यकतानुसार उसे खींचा और मोड़ा जा सकता है।”

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