# प्लेटो के दार्शनिक राजा का सिद्धान्त : विशेषताएं एवं आलोचनाएं | Plato’s Philosophical King’s Doctrine

प्लेटो के दार्शनिक राजा का सिद्धान्त :

प्लेटो के अनुसार आत्मा के तीन तत्त्व- ज्ञान (Wisdom), साहस (Spirit), और वासना (Appetite) हैं। इन्हीं के अनुरूप समाज में ज्ञान प्रधान, भाव प्रधान और वासना प्रधान मनुष्य होते हैं। ज्ञान प्रधान वर्ग सर्वोत्तम और सर्वोपरि है। दार्शनिक शासक ज्ञान प्रधान वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। प्लेटो का यह दृढ़ विश्वास था कि जब तक शासन सत्ता दार्शनिक शासकों को नहीं सौंपी जायेगी, तब तक राज्य में सुव्यवस्था और शान्ति नहीं स्था पित की जा सकती। यही कारण है कि प्लेटो ने एक ऐसी शिक्षा योजना बनाई, जिससे दार्शनिक शासक उत्पन्न हो सके। प्लेटो का विश्वास था कि दार्शनिक शासक ही राज्य के सामाजिक जीवन में आई हुई बुराइयों को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

प्लेटो ने पुस्तक ‘रिपब्लिक‘ की पांचवें पुस्तिका में लिखा है- “जब तक दार्शनिक राजा नहीं बनते अथवा इस जगत के राजाओं या राजकुमारों को दर्शन की प्रेरणा और शक्ति नहीं मिलती और राजनैतिक महानता तथा बुद्धि मिलकर एक नहीं हो पाती और इनमें से एक को छोड़कर दूसरे की खोज करने वाले सामान्य व्यक्ति राजकाज से बाहर रहने के लिये बाध्य नहीं कर दिये जाते, नगर कभी भी अपने पापों से शान्त नहीं होंगे।”

प्लेटो के विचारों पर एथेन्स की शासन-प्रणाली का अधिक प्रभाव पड़ा। वह एथेन्स के लोकतन्त्रात्मक शासन के दोषों को जानता था और इस कारण असन्तुष्ट था। उसके गुरु सुकरात के प्राणदण्ड का कारण भी लोकतन्त्र की दुर्बलताएं थीं। उस समय शासकों के चुनाव में शिक्षा और योग्यता का अधिक ध्यान नहीं रखा जाता था, जिससे शासन सत्ता अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में चली जाती थी। इस प्रकार शासन दोषपूर्ण था। प्लेटो के अनुसार दार्शनिक शासक ही राज्य से स्वार्थपरता और अज्ञानता का अन्त करके एक समाज-कल्याणकारी राज्य स्थापित कर सकता है।

दार्शनिक शासक की विशेषताएं :

प्लेटो का दार्शनिक शासक सद्गुणों की प्रतिमूर्ति है। इन गुणों को वह समाज के हित में कार्यान्वित करने के लिये उत्सुक रहता है। प्लेटो का शासक न्यायप्रिय, मृत्यु भय से मुक्त सत्य का अन्वेषण करने वाला और कर्मयोगी है। प्लेटो के शासक की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. ज्ञान प्रधान

दार्शनिक शासक राज्य के तीन वर्गों में ज्ञान प्रधान वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। प्लेटो ने इसी कारण शासक वर्ग के लिये एक विशेष प्रकार की योजना बनाई थी।

2. साम्यवादी

प्लेटो ने दार्शनिक शासकों के लिये स्त्री साम्यवाद प्रस्तुत किया। प्लेटो ने शासकों को स्त्री (परिवार) और सम्पत्ति के बन्धन से मुक्त रखा है। उसने शासकों को अलग-अलग परिवार के बन्धनों में न डालकर एक सम्मिलित परिवार का सदस्य होने की योजना बनाई थी।

3. निःस्वार्थ

प्लेटो के अनुसार दार्शनिक शासक पूर्ण निःस्वार्थ होते हैं। वे राज्य के हितों को अपना ही हित समझते हैं। प्लेटो ने शासकों के लिये स्त्री और सम्पत्ति का साम्यवाद इसलिये बनाया, ताकि वे निःस्वार्थ शासन चलायें।

4. सुशिक्षित

दार्शनिक शासक को पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। प्लेटो का विश्वास था कि शासक अच्छा राजनीतिज्ञ, दर्शनशास्त्र का ज्ञाता और अच्छा शासक होना चाहिए। इसी कारण प्लेटो ने शासकों के लिये एक लम्बी शिक्षा योजना प्रस्तुत की है। ज्ञानियों की सरकार में ही प्लेटो विश्वास करता था। उसकी शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य जातियों के अल्पतन्त्र की स्थापना करना है, जिससे शासन भली प्रकार चल सके। जेलर (Zeller) के अनुसार, “प्लेटो का राज्य एक अथवा कुछ के द्वारा चालित नेकी और बुद्धिमत्ता का कुलीनतन्त्र मात्र बन सकता है।”

5. निरंकुश

प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में दार्शनिक शासक को निरंकुश शासक का रूप दिया है। एक ओर अपने शासकों को अनियन्त्रित शक्तियाँ दी हैं, दूसरी ओर वह निरंकुश शासन का विरोध करता है। दार्शनिक शासक पूर्ण निरंकुश न हो जाये इस कारण उन पर कुछ बन्धन है। उनको भी संविधान के निम्नलिखित मौलिक नियमों को मानना पड़ेगा-

  1. शासकों को राज्य का उतना ही विस्तार करना चाहिये जितना कि राज्य को आत्मनिर्भर बनने और राज्य में एकता स्थापित रखने के लिये आवश्यक है। इस प्रकार राज्य का आकार न अधिक बड़ा और न अधिक छोटा होना चाहिये।
  2. दार्शनिक शासक को अपने राज्य में अधिक सम्पन्नता या निर्धनता को बढ़ावा नहीं देना चाहिये। इससे राज्य में दो वर्ग स्थापित होने की सम्भावना है, जिससे वर्ग-संघर्ष बढ़ेगा और राज्य की एकता व शान्ति खतरे में पड़ जायेगी। दार्शनिक शासक को धन के उतार-चढ़ाव में असन्तुलन न होने देना चाहिये।
  3. दार्शनिक शासक को आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना के लिये यह देखना है कि राज्य के सभी व्यक्ति अपने-अपने कर्त्तव्यों का पालन करें तथा किसी दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप न करें।
  4. दार्शनिक शासक को शिक्षा-पद्धति में किसी प्रकार का परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।

दार्शनिक राजा का सिद्धान्त की आलोचना :

1. अव्यावहारिक सिद्धान्त

प्लेटो का दार्शनिक राजा का सिद्धान्त अव्यावहारिक है। दर्शनशास्त्र, गणित तथा लोक-जीवन का ज्ञान रखने वाले तथा सांसारिक विषयों में अरुचि रखने वाले व्यक्तिमिलना बहुत कठिन है। प्लेटो अपने दार्शनिक शासक में इन दोनों विशेषताओं की कल्पना करता है। शासन की सफलता के लिये गणित और दर्शनशास्त्र का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि शासक को मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, कानून और राजनीति का ज्ञान होना आवश्यक है।

2. निरंकुश शासन का समर्थन

दार्शनिक शासक को असीम अधिकार देने से निरंकुश शासन का समर्थन होता है। एक्टन के शब्दों में, “सत्ता मनुष्य को बिगाड़ती है और पूर्णसत्ता पूर्ण रूप से बिगाड़ती है।” प्लेटो ने शासकों पर जो प्रतिबन्ध लगाये थे, वे पर्याप्त नहीं थे।

3. जनता की निम्न स्थिति

दार्शनिक शासकों को असीम अधिकार मिलने से सामान्य जनता की स्थिति पशुवत् अथवा राज्यतन्त्र के पुर्जे के समान हो जाती है, उन्हें मानव सुलभ मूल अधिकार भी नहीं मिलते।

4. दार्शनिक और प्रशासन में अन्तर

दार्शनिकता के विकास से व्यक्ति में जो गुण उत्पन्न होते हैं, बहुधा वे प्रशासन में सहायक होने के स्थान पर बाधक सिद्ध होते हैं। अस्तु, दार्शनिकों का उत्तम शासक होना आवश्यक नहीं है। जोवेट के शब्दों में, “दार्शनिक राजा या तो भविष्य में बहुत दूर तक देखने वाला होता है या अतीत में पीछे की ओर देखता है, वर्तमान की वास्तविकता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है।”

5. शासन में जनता के योगदान का अभाव

दार्शनिक शासक शासन में जनता की राय नहीं लेते, जनता के सक्रिय सहयोग के बिना प्रशासन कभी भी सफल नहीं हो सकता।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं (Rajnitik Samajshastra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ : राजनीतिक समाजशास्त्र, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, मूल रूप से दो महत्वपूर्ण शब्दों – राजनीति और समाजशास्त्र – से मिलकर बना…

# भारतीय निर्वाचन आयोग : संवैधानिक स्थिति व संरचना (Bharatiya Nirvachan Aayog)

भारतीय लोकतंत्र की सफलता का आधार एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रणाली है। इसी गौरवशाली प्रणाली की धुरी है हमारे देश का “निर्वाचन आयोग“। संविधान द्वारा…

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan ki Prastavana

भारतीय संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Steps in the Content Analysis Process)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, उपयोगिता एवं महत्व (Content Analysis)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *