भारतीय संविधान की प्रस्तावना :
प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और संविधान के लागू होने की तिथि आदि का संक्षेप में उल्लेख है। संविधान सभा ने इसे 22 जनवरी 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। जो कि इस प्रकार है-
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य, बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को;
★ सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय;
★ विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म और उपसाना की स्वतंत्रता;
★ प्रतिष्ठा व अवसर की समता प्राप्त करने के लिए; तथा
★ उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए;
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज में तारीख 26 नवंबर 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
प्रस्तावना में उल्लेखित शब्द –
हम भारत के लोग
यह शब्द यू०एस०ए० के चार्टर एक्ट से लिया गया हैं। इससे सामान्यतः निम्न बातें स्पष्ट होती है-
- 1. संविधान के द्वारा अंतिम प्रभुसत्ता भारतीय जनता में निहित की गई है।
- 2. संविधान निर्माता भारतीय जनता के प्रतिनिधि है।
- 3. भारतीय संविधान, भारतीय जनता की इच्छा का परिणाम है और भारतीय जनता ने ही इसे राष्ट्र को समर्पित किया है।
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न
इस शब्द का अर्थ है कि आंतरिक और बाह्य दृष्टि से भारत पर किसी विदेशी सत्ता का अधिकार नहीं है अर्थात भारत न तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और न ही किसी अन्य देश का डोमिनियन हैं इसके ऊपर किसी की शक्ति नहीं है।
समाजवादी
इसे संविधान में कही भी परिभाषित नहीं किया गया है। सामान्यतः इसका अर्थ समाज में आय की विषमता को कम करने से होता है। भारतीय संविधान में समाजवाद के लोकतंत्रात्मक समाजवाद की विचारधारा को अपनाया गया है।
पंथनिरपेक्ष
भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता से आशय यह है कि, राज्य का अपना कोई पंथ मजहब या संप्रदाय नहीं होगा। राज्य की नजर में सभी पंथ बराबर होंगे और वह पंथ के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करेगा।
लोकतंत्रात्मक
लोकतंत्र से आशय ऐसी शासन प्रणाली से है जिसमें बहुमत के आधार पर चुने हुए जनता के प्रतिनिधि शासन करते हैं।
गणराज्य
गणराज्य की संकल्पना उस राज्य का प्रतीक है जिसमें जनता सर्वोच्च होती है, इसमें कोई वंशानुगत शासक नहीं होता अर्थात् राज्य का सर्वोच्च अधिकारी वंशानुगत राजा न होकर भारतीय जनता द्वारा निर्वाचित होता है।
विशेष :- राष्ट्र का प्रमुख एक निश्चित अवधि तक के लिए ही चुना जाता है।
न्याय (Justice)
भारतीय प्रस्तावना में न्याय के तीन आयामों (सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक) को अपनाया गया है।
स्वतंत्रता (Freedom)
स्वतंत्रता का अर्थ है लोगों की गतिविधियों पर किसी प्रकार की रोकटोक की अनुपस्थिति तथा साथ ही व्यक्ति के विकास के लिए अवसर प्रदान करना।
समता (Equality)
समता का अर्थ है समाज के किसी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने के उपबंध।
बंधुत्व (Fraternity)
बंधुत्व का अर्थ है आपसी भाईचारें से हैं। एक ही भारत माता की संतान होने की साझी भावना।
प्रस्तावना से संबंधित वाद :
1. इनरी बेरूवारी वाद (1960)
प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है और इसमें संशोधन भी संभव नहींं है।
2. केशवानंद भारती (1973)
प्रस्तावना संविधान का अभिन्न भाग है और इससे संशोधन भी संभव है बशर्ते उसके मूलभूत ढाचे में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
प्रस्तावना में संशोधन –
भारतीय प्रस्तावना में, अब तक केवल एक ही बार संशोधन हुआ है। (42 वें संविधान संशोधन 1976, जोड़े गये शब्द – समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता।)
प्रस्तावना से संबंधित कथन –
- के०एम०मुंशी ने उद्देशिका को राजनीतिक कुंडली (जन्मपत्री) कहा है।
- पं० जवाहर लाल नेहरू के अनुसार भारतीय संविधान की आत्मा उद्देशिका में समाहित है।
- उद्देशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।
- ग्रेनविल ऑस्टिन – भारतीय संविधान मूलतः सामाजिक क्रांति का दस्तावेज है।
- न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह (गोलकनाथ मामले, 1967)- उद्देशिका को संविधान की मूल आत्मा कहा है।
- एन० ए० पालकीवाला (प्रसिद्ध न्यायविद् व संविधान विशेषज्ञ)- प्रस्तावना को संविधान के ‘परिचय पत्र’ की संज्ञा दी है।
- सुभाष कश्यप “संविधान शरीर है तो उद्देशिका उसकी आत्मा है। उद्देशिका आधारशिला है तो संविधान उस पर खड़ी अट्टालिका है।”
प्रस्तावना में उल्लेखित कुछ शब्दों को दो क्रांतियों से लिया गया है-
- फ्रांसिसी क्रांति– स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व
- रूसी क्रांति– सामाजिक, आर्थिक न्याय
उद्ददेशिका से संबंधित दो विशेष तथ्य –
- उद्देशिका ना तो विधायिका की शक्ति का स्त्रोत है और न ही उसके शक्तियों पर प्रतिबंध लगाने वाला है।
- यह गैर न्यायिक है अर्थात् इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
विशेष :-
- उद्देशिका न्याय योग्य नहीं होती, अर्थात इसके आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता।
- उद्देशिका संविधान का आभूषण है, यह एक उचित स्थान है जहां से कोई भी संविधान का मूल्यांकन कर सकता है।
- न्यायपलिका के अनुसार – उद्देशिका का प्रयोग संविधान की व्याख्या के लिए किया जा सकता है, जो कि संविधान के कानूनी अर्थ निर्णय में सहायता करता है।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आविर्भाव पं० जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में रखे गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव‘ से हुआ है। यही कारण है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘उद्देशिका’ कहकर भी संबोधित किया जाता है।
- प्रस्तावना (उद्देशिका), संविधान का भाग है किन्तु उसके अन्य भाग से स्वतंत्र होकर उसका कोई विधिक प्रभाव नहीं है।
- प्रस्तावना, अमेरिकी संविधान (प्रथम लिखित संविधान) से ली गई है, लेकिन प्रस्तावना की भाषा पर ऑस्ट्रेलियाई संविधान की प्रस्तावना का प्रभाव है।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम-1976 द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता शब्द शामिल किये गए।.