भारतीय संघीय संविधान के आवश्यक तत्व :
भारतीय संविधान एक परिसंघीय संविधान है। परिसंघीय सिद्धान्त के अन्तर्गत संघ और इकाइयों में शक्तियों का विभाजन होता है और यह विभाजन ऐसी रीति से किया जाता है जिससे प्रत्येक अपने क्षेत्र में पूर्णतया “स्वतंत्र” हों और साथ ही साथ एक-दूसरे के सहयोगी भी हों, न कि एक-दूसरे के अधीन हों। इस प्रकार परिसंघीय सिद्धान्त का सार है- स्वतंत्रता एवं समन्वयकारिता।
संघीय संविधान के लिए आवश्यक तत्व :
संघीय संविधान के लिए आवश्यक तत्व:- एक संघीय संविधान में सामान्यतया निम्नलिखित आवश्यक तत्व पाये जाते हैं-
- शक्तियों का विभाजन
- संविधान की सर्वोच्चता
- लिखित संविधान
- संविधान की कठोरता
- स्वतंत्र न्यायपालिका
1. शक्तियों का विभाजन
केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन संघीय संविधान का एक आवश्यक तत्व है। यह विभाजन संविधान के द्वारा ही किया जाता है। प्रत्येक सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में सार्वभौम होती हैं और दूसरे के अधिकारों एवं शक्तियों का अतिक्रमण नहीं करतीं। संघीय शासन में राज्य की शक्तियों का अनेक सहयोगी संस्थाओं में विकेन्द्रीकरण होता है। सरकार के सभी अंगों का स्रोत स्वयं संविधान होता है जो उनकी शक्तियों के प्रयोग पर नियंत्रण रखता है।
2. संविधान की सर्वोच्चता
संविधान सरकार के सभी अंगों- कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का स्रोत होता है। उनके स्वरूप, संगठन और शक्तियों से सम्बन्धित सभी उपबन्ध संविधान में ही निहित होते हैं। संविधान उनके अधिकार-क्षेत्र की सीमा निर्धारित करता है जिनके भीतर वे कार्य करते हैं। सभी संस्थाएँ संविधान के अधीन और उसके नियन्त्रण में कार्य करती हैं। संघीय व्यवस्था में संविधान देश की सर्वोच्च विधि माना जाता है।
3. लिखित संविधान
संघीय संविधान आवश्यक रूप से लिखित संविधान होता है। संघ-राज्य की स्थापना एक जटिल संविदा द्वारा होती है जिसमें संघ में शामिल होने वाली इकाइयाँ कुछ शर्तों पर ही संघ में शामिल होती हैं। इन शर्तों का लिखित होना आवश्यक होता है अन्यथा संविधान की सर्वोच्चता को अक्षुण्ण रखना असम्भव हो जाएगा।
4. संविधान की कठोरता
किसी भी देश का संविधान एक स्थायी दस्तावेज होता है। यह देश की सर्वोच्च विधि कहा जाता है। संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखने के लिए संशोधन की प्रक्रिया का कठिन होना आवश्यक है। इसका यह अर्थ नहीं कि संविधान अपरिवर्तनीय हो वरन् केवल यह है कि संविधान में वही परिवर्तन किए जा सकें जो समय और परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक हों।
5. स्वतंत्र न्यायपालिका
संघीय शासन में संविधान के उपबन्धों के निर्वचन के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय देने का प्राधिकार न्यायपालिका को ही प्राप्त है। न्यायपालिका सरकार के तीसरे अंग के रूप में एक पूर्ण स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संस्था के रूप में अपने कार्यों का सम्पादन करती है। संघीय व्यवस्था में संविधान की सर्वोच्चता को सुरक्षित रखने का कार्य न्यायपालिका के ऊपर ही रहता है। न्यायपालिका द्वारा किया गया संविधान का निर्वचन सभी प्राधिकारियों पर आबद्धकर होता है।
संघीय संविधान के सभी आवश्यक तत्व भारतीय संविधान में विद्यमान हैं। यह दोहरी राज्य पद्धति की स्थापना करता है- केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार। केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन है। प्रत्येक सरकार अपने अपने क्षेत्र में सर्वोपरि है और एक दूसरे की सहयोगी भी है। भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है और देश की सर्वोच्च विधि है।
संविधान के वे उपबन्ध जो संघीय व्यवस्था से सम्बन्ध रखते हैं, उनमें राज्य सरकारों की सहमति के बिना परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। संविधान के निर्वचन और उसके संरक्षण के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की भी स्थापना की गई है। परन्तु कुछ संविधानवेत्ताओं ने इन पर आपत्ति प्रकट की है और उनका कहना है कि भारतीय संविधान सही रूप में एक संघीय संविधान नहीं है। प्रोफेसर ह्लिलर के अनुसार भारतीय संविधान एक अर्द्ध संघीय संविधान है।