# मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा-पत्र | Universal Declaration of Human Rights in Hindi

मानवीय अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा :

द्वितीय विश्व युद्ध के काल में मानव अधिकारों पर जो कुठाराघात किया गया था, उसे देखकर राजनीतिक नेताओं द्वारा मिलकर यह विचार किया गया कि अब भविष्य में मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस व्यवस्था की जानी चाहिए। 1945 में गठित ‘संयुक्त राष्ट्र संघ‘ द्वारा मानवीय अधिकारों की सुरक्षा के लिए योजना प्रस्तुत करने का कार्यभार आर्थिक और सामाजिक परिषद को सौंपा गया। आर्थिक तथा सामाजिक परिषद ने एक मानव अधिकार आयोग की स्थापना की जिसकी अध्यक्ष श्रीमती ऐलोनोर रूजवेल्ट थीं।

इस आयोग ने मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र का प्रारूप तैयार किया जिसे महासभा द्वारा 10 दिसम्बर, 1948 को स्वीकार कर लिया गया। मानव अधिकार द्वारा निर्मित तथा महासभा द्वारा स्वीकृत इस अधिकार पत्र को ही ‘मानव अधिकारों की सार्वलौकिक या विश्वव्यापी घोषणा‘ के नाम से जाना जाता है। प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को ‘मानव अधिकार दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। घोषणा-पत्र में मानव अधिकारों के सम्बन्ध में 30 धाराएँ हैं जिनका सम्बन्ध मानव के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक अधिकारों से है।

घोषणा-पत्र के मुख्य प्रावधान :

घोषणा-पत्र के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं –

सामान्य अधिकार (General Rights)

  • अनुच्छेद 1 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र संघ की यह मान्यता है कि सभी मनुष्य जन्म से स्वतन्त्र और अधिकार तथा मर्यादा में समान हैं I
  • अनुच्छेद 2 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जाति, रंग, लिंग, भाषा तथा धर्म, राजनीतिक अथवा सामाजिक उत्पत्ति, जन्म अथवा अन्य किसी प्रकार के भेदभाव के बिना इस घोषणा में व्यक्त किये गये सभी अधिकार और स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होंगी।

नागरिक व राजनीतिक अधिकार (Civil and Political Rights )

  • अनुच्छेद 3 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को जीवन, स्वाधीनता और सुरक्षा का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 4 के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को दासता या गुलामी में नहीं रख सकेगा।
  • अनुच्छेद 5 के अनुसार, किसी व्यक्ति को क्रूर या अमानुषिक दण्ड नहीं दिया जायेगा और न ही उसके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जायेगा।
  • अनुच्छेद 7 के अनुसार, कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। सभी व्यक्तियों को कानून की सुरक्षा प्राप्त होगी।
  • अनुच्छेद 9 के अनुसार, किसी व्यक्ति को मनमाने तरीके से गिरफ्तार, कैद अथवा निष्कासन नहीं किया जा सकेगा।
  • अनुच्छेद 11 के अनुसार, किसी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं समझा जायेगा जब तक कि न्यायालय द्वारा उसे अपराधी सिद्ध नहीं कर दिया जाये।
  • अनुच्छेद 12 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की पारिवारिक तथा पत्र-व्यवहार की गोपनीयता में मनमाना दखल नहीं दिया जायेगा और न ही उसके सम्मान तथा ख्याति पर आघात पहुँचाया जायेगा।
  • अनुच्छेद 13 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को अपने राज्य की सीमा के भीतर आवागमन करने और निवास की स्वतन्त्रता का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 14 के अनुसार, राजनीतिक अपराध के लिए दण्ड से बचने के लिए सभी व्यक्तियों को किसी दूसरे देश में शरण लेने और सुख से रहने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 15 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार तथा राष्ट्रीयता में परिवर्तन का भी मान्य अधिकार प्राप्त है ।
  • अनुच्छेद 19 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के प्रशासन में भाग लेने के लिए स्वतन्त्रतापूर्वक प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित होने का अधिकार होगा।

सामाजिक व आर्थिक अधिकार (Social and Economical Rights )

  • अनुच्छेद 16 के अनुसार, वयस्क अवस्था वाले सभी पुरुष और स्त्री को जाति, राष्ट्रीयता अथवा धर्म की सीमा के बिना विवाह करने और परिवार स्थापित करने का अधिकार है। विवाह करने, वैवाहिक जीवन व्यतीत करने और वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद के प्रसंग में स्त्री-पुरुष दोनों पक्षों को समान अधिकार प्राप्त हैं।
  • अनुच्छेद 17 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को सम्पत्ति अर्जित करने तथा उसे बनाये रखने का अधिकार होगा।
  • अनुच्छेद 23 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को काम करने, जीविका के साधन चुनने, काम की उचित एवं अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त करने और बेकारी से सुरक्षित रहने का अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान काम के लिए समान वेतन पाने का अधिकार प्राप्त है।
  • अनुच्छेद 24 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 25 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा जीवन-स्तर बनाने का अधिकार है जो उसके और परिवार के स्वास्थ्य एवं सुख के लिए पर्याप्त हो ।

धार्मिक, शैक्षिक तथा सांस्कृतिक अधिकार (Religious, Educational and Cultural Rights)

  • अनुच्छेद 18 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को विचार, अनुभूति तथा धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार के अन्तर्गत धर्म प्रचार की स्वतन्त्रता तथा धर्म या मत परिवर्तन करने की स्वतन्त्रता भी प्राप्त होगी।
  • अनुच्छेद 26 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। प्रारम्भिक शिक्षा अनिवार्य और निःशुल्क होगी।
  • अनुच्छेद 27 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को समाज के सांस्कृतिक जीवन में स्वतन्त्रतापूर्वक भाग लेने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 29 के अनुसार, व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ कर्तव्य हैं। अपने अधिकारों एवं स्वतन्त्रता का उपभोग करने में सभी व्यक्तियों को उन सीमाओं में रहना पड़ेगा, जो कानून द्वारा इस उद्देश्य से निर्धारित की गई है कि दूसरों के अधिकारों एवं स्वतन्त्रताओं का अपेक्षित सम्मान तथा प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके और लोकतान्त्रिक समाज में नैतिकता, सार्वजनिक शान्ति तथा जनकल्याण के लिए समुचित आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

घोषणा पत्र में यह प्रावधान कर दिया गया है कि घोषणा-पत्र में उल्लिखित अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों के विरुद्ध किसी भी दशा में प्रयोग न किया जाये ।

श्रीमती रूजवेल्ट ने इस घोषणा पत्र को समस्त मानव समाज के मैग्नाकार्टा (Magna Carta) का नाम दिया था। पामर एवं पार्किन्स घोषणा-पत्र के यथार्थ स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि “यह घोषणा केवल आदर्शों का प्रतिपादन है, कानूनी रूप से बाध्य करने वाला कोई समझौता नहीं है। परन्तु यह एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है।”

वर्तमान में, मानव अधिकारों की रक्षा के लिए विश्व में दो संगठन कार्य कर रहे हैं –

  1. प्रथम, मानव अधिकार आयोग और
  2. द्वितीय, एमनेस्टी इन्टरनेशनल

मानव अधिकार : यथार्थ स्थिति

‘मानव अधिकारों’ की विश्वव्यापी घोषणा के बावजूद भी विश्व के अधिकांश देशों में मानव अधिकारों का हनन किया जा रहा है। किन्तु मानव अधिकार आयोग कुछ भी करने में असमर्थ रहा है। वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है। आधुनिक युग में गैर-सरकारी संगठन मानव अधिकारों की रक्षा की दिशा में सक्रिय हो रहे हैं। इस प्रकार के कुछ अधिकार सक्रिय संगठन हैं—

  1. एमनेस्टी इन्टरनेशनल,
  2. संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेन्सियाँ,
  3. वर्किंग ग्रुप ऑफ द कमीशन ऑफ ह्यूमन राइट्स,
  4. दि पॉलिटिकल कमीशन ऑफ जस्टिस एण्ड पीस,
  5. दि इण्टरनेशनल कमेटी ऑफ दि रेडक्रॉस।

घोषणा-पत्र का महत्व (Importance of Declaration )

मानवीय अधिकारों के घोषणा पत्र का महत्व इस बात में है कि यह संसार के सभी राज्यों के लिए मानव अधिकारों का एक मानक प्रस्तुत करता है । यह ठीक है कि अनेक देशों में इन अधिकारों का उल्लंघन भी होता है, तथापि घोषणा-पत्र के अस्तित्व से सब राज्यों के सामने अधिकारों का आदर्श रहता है तथा उनके उल्लंघन के लिए उन्हें विश्व समाज की आलोचना का सामना करना पड़ता है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# भारतीय संघीय संविधान के आवश्यक तत्व | Essential Elements of the Indian Federal Constitution

भारतीय संघीय संविधान के आवश्यक तत्व : भारतीय संविधान एक परिसंघीय संविधान है। परिसंघीय सिद्धान्त के अन्तर्गत संघ और इकाइयों में शक्तियों का विभाजन होता है और…

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan ki Prastavana

भारतीय संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और…

# भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं | Bharatiya Samvidhan Ki Visheshata

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान सभा ने भारत का नवीन संविधान निर्मित किया। 26 नवम्बर, 1949 ई. को नवीन संविधान बनकर तैयार हुआ। इस संविधान…

# प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य | Freedom of Press and Expression

प्रेस की स्वतन्त्रता : संविधान में प्रेस की आज़ादी के विषय में अलग से कोई चर्चा नहीं की गई है, वहाँ केवल वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता…

# सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामला (Sarla Mudgal Case)

सरला मुद्गल बनाम भारत संघ : सरला मुद्गल बनाम भारत संघ वाद सामुदायिक कल्याण से जुड़ा बाद है, भारत के संविधान के निदेशक तत्वों में नागरिकों के…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 + six =