# धारणीय (सतत्) विकास क्या है? | Indicators of Sustainable Development

धारणीय (सतत्) विकास :

धारणीय विकास से तात्पर्य ऐसे विकास से है, जो वर्तमान की जरूरतों को पूरा करते हुए भी भविष्य की पीढ़ियों की इन आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता के साथ समझौता नहीं करता हो। इसके अन्तर्गत दो केन्द्रीय संकल्पनाएँ समाहित होती है-

  1. आवश्यकताओं की संकल्पना, विशेषकर विश्व के गरीबों की आधारभूत आवश्यकताएँ, जिनको अतिरिक्त प्राथमिकता दी जानी चाहिए, तथा
  2. तकनीकी तथा सामाजिक व्यवस्था की स्थिति द्वारा पर्यावरण की वर्तमान तथा भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता पर आरोपित परिसीमन की संकल्पना।

दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि- “पर्यावरण को विपरीत रूप से प्रभावित न करते हुए तथा लोगों की जरूरत की पूर्ति में सक्षम विकास ही धारणीय विकास है।”

पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व आयोग के ब्रटलैण्ड प्रतिवेदन में दी गई स्थिर अथवा टिकाऊ अथवा धारणीय विकास की परिभाषा इस प्रकार है- “धारणीय अथवा टिकाऊ विकास वह है, जो भावी पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताओं को पूरी करने की क्षमता को क्षति पहुँचाए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करें।” इस तरह टिकाऊ विकास एवं सर्वग्राह्य अवधारणा यह है जिसमें सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय लक्ष्यों का समावेश है।

विकास में पारिस्थितियों दृष्टिकोण को सम्मिलित करके प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग भी किया जा सकता है तथा पारिस्थितिकी संकट से बचा भी जा सकता है। सन्तुलित विकास, समन्वित विकास तथा सतत् विकास इसके विभिन्न पक्ष है। सतत विकास से अभिप्राय ऐसे विकास से है, जो पर्यावरण को हानि पहुँचाए बिना जीवन की गुणवत्ता जारी रख सके। विकास को मात्र आर्थिक उत्पादन से न जोड़कर उसके सामाजिक, आर्थिक एवं पारिस्थितिकीय पक्षों पर भी ध्यान देना चाहिए।।

पारिस्थितिक तन्त्र के अनुरूप विकास हेतु पर्यावरण को कम-से-कम हानि पहुँचाने वाली प्रौद्योगिकी का विकास, जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण, भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संसाधनों का नियोजित व नियमित उपभोग, संसाधन संरक्षण आदि उपायों का अमल करना होगा। चूँकि हमारा अस्तित्व पर्यावरण के साथ जुड़ा है अतः पर्यावरण को बचाने हुए सतत् विकास की अवधारणा को विकसित करना समयानुकूल होगा।

धारणीय/सतत्/टिकाऊ विकास की शर्ते-

टिकाऊ विकास को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक है-
  1. ऐसी राजनीतिक प्रणाली जिसमें निर्णय की प्रक्रिया में नागरिक कारगर रूप से भाग लेते हों।
  2. ऐसी आर्थिक प्रणाली, जो अपने परिश्रम से और टिकाऊ तौर पर अधिशेष और प्रौद्योगिकी ज्ञान पैदा करती है।
  3. ऐसी सामाजिक प्रणाली, जिसमें गैर-सामंजस्यपूर्ण विकास को उठने वाले तनावों को सुलझाने की व्यवस्था हो।
  4. ऐसी उत्पादन प्रणाली, जो विकास के पारिस्थितिकीय आधार को सुरक्षित रखना अपना कर्तव्य मानती हो।
  5. ऐसी प्रौद्योगिक प्रणाली, जो निरन्तर नए सुझाव खोज सके।
  6. ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली, जो व्यापार व वित्त के टिकाऊ तौर-तरीकों को बढ़ावा दे।
  7. ऐसी प्रशासनिक प्रणाली जो लचीली हो और जिसमें अपनी भूलों को सुधारने की क्षमता हो।

धारणीय विकास के सूचक :

धारणीय विकास की धारणा बहुआयामी पर्यावरण प्रबन्धन को इंगित करती है। विकास की इस अवधारणा में स्थानीय पर्यावरण एवं उससे सम्बन्धित प्राकृतिक संसाधनों का मानवीय हित में प्रयोग इस तरह किया जाए कि प्रकृति की गुणवत्ता का हास न हो साथ ही विकास के कार्यों में किसी तरह की रुकावट भी न पड़े। इस तरह धारणीय अथवा टिकाऊ या सतत् विकास के अन्तर्गत पर्यावरण एवं समाज के हितों के अनुकूल विकास के कार्यक्रमों को योजनाबद्ध रूप में निर्मित कर क्रियान्वित किया जाता है।

धारणीय विकास के अन्तर्गत ऐसे पारिस्थितिकीय विकास की कल्पना की जाती है जिसकी प्रक्रिया में पर्यावरण का न्यूनतम क्षरण होता है। धारणीय कृषि विकास में रासायनिक-उर्वरकों एवं खतरनाक कीटनाशकों के स्थान पर जैव-उर्वरकों एवं जैव-कीटनाशकों का प्रयोग कर कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति को भविष्य में भी बनाए रखना सम्भव होगा और मृदा में जो खतरनाक रसायन प्रवेश कर उसे प्रदूषित करते हैं उससे मुक्ति मिलेगी।

धारणीय औद्योगिक विकास के अन्तर्गत उद्योगों को प्रदूषण फैलाने से मुक्त रखने का प्रयास किया जाता है। विकासशील देशों में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में वृहत् उद्योग, मध्यम स्तरीय उद्योग एवं लघु उद्योग स्थापित किए जाते हैं। ऐसे उद्योगों की स्थापना प्रायः नगरों में व बस्तियों के आस-पास की जाती है जिससे नगरों एवं बस्तियों के लोग इन उद्योगों द्वारा फैलाए जाने प्रदूषणों का शिकार बनते हैं। इन उद्योगों में प्रदूषण के शमन से सम्बन्धित संयन्त्र नहीं लगाए जाते। धारणीय विकास के अन्तर्गत ऐसे उद्योगों की स्थापना की जाती है जो उपभोक्ता एवं पूँजी वस्तुओं का निर्माण तो करे, परन्तु वस्तु की कीमत पर समाज को प्रदूषण की तोहफा न दें। इस दृष्टि से उद्योगों की स्थापना के साथ ही उसमें प्रदूषण उपशमन यन्त्र भी लगाया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को कानून बनाकर उसका कठोरता से पालन किया जाना चाहिए साथ ही बड़े और हानिकारक रासायनिक उत्पाद उद्योगों को बस्ती और शहरों से दूर स्थापित किया जाना चाहिए। इन उद्योगों के आस-पास वृक्षारोपण कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिए। वृक्ष प्रदूषण एवं शोरगुल को सोखकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता करते हैं।

प्रदूषण मुक्त परिवहन धारणीय विकास का एक अन्य संकेतक है। अल्पविकसित देशों में परिवहन के साधन के रूप में स्कूटर, मोटर साइकिलों, कारों, बसों, ट्रकों एवं रेलों, वायुयान एवं जलपोतों का उपयोग होता है जो हानिकारक धुएँ का उत्सर्जन कर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण को फैलाते हैं। अतः धारणीय विकास के अन्तर्गत परिवहन के ऐसे साधनों का विकास किया जाना चाहिए जो साइलेन्सर युक्त हों तथा विषैली गैसों का उत्सर्जन न करें। विकसित देशों में किए जा रहे ऐसे प्रयास को विकासशील देशों में भी अपनाया जाना चाहिए।

प्रदूषण मुक्त ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना भी सततीय विकास का एक सूचक है। ऊर्जा के परम्परागत स्रोत कोयला एवं पेट्रोलियम पदार्थ हैं। इन दोनों साधनों से विद्युत् उत्पादन करने पर पर्यावरण के प्रदूषित होने का खतरा बना रहता है। अतः ऊर्जा उत्पादन हेतु प्रदूषण मुक्त पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग किया जाना चाहिए, साथ ही गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि) के विकास को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

जनसंख्या नियन्त्रण- अल्पविकसित देशों में अनियन्त्रित जनसंख्या वृद्धि गरीबी एवं पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा देने का कार्य करती है, अतः टिकाऊ धारणीय विकास के लिए जनसंख्या नियन्त्रण विकासशील देशों की अनिवार्य आवश्यकता है।

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