# छत्तीसगढ़ में पर्यटन की संभावनाएं एवं सहयोगी कारक

वर्तमान समय में पर्यटन केवल मुद्रा अर्जित करने तथा मनोरंजन का साधन ही नहीं है, अपितु इसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों, देशों के लोगो की सभ्यता एवं संस्कृति का भी आदान-प्रदान होता है, आपस में मित्रता सामंजस्य तथा सद्भाव बढता है। शाब्दिक अर्थ में पर्यटन अंग्रेजी भाषा के TOURISM शब्द का हिन्दी रूपांतरण है जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के TORINUS शब्द से हुई है, जो फेंच में अपभ्रंश होकर TOUR हो गया, सन् 1292 से TOUR शब्द का प्रयोग हो रहा, जो वर्तमान में बदलकर TOURISM हो गया है, जिसका अभिप्राय अपने घर से अन्य स्थानों को मनोरंजन व्यापार, स्वास्थ्य, अध्ययन, सम्मेलन आयोजन इत्यादि के लिए घुमना होता है। अन्य शब्दों में पर्यटन प्राकृतिक घटनाओं एवं आपस की संबंधों का मिला जुला स्वरूप है। जबकि प्राचीन काल में पर्यटन एक क्रिड़ा, मोटरगाड़ी में घुमना साईकिल चलाना, भ्रमण एवं नाव में विहार करना इत्यादि माना जाता था।

छत्तीसगढ़ में पर्यटन की संभावनाएं एवं सहयोगी कारक :

पर्यटन विकास की प्रबल संभावनाओं के बावजूद आधारभूत सुविधाओं की कमी के कारण बहुत अधिक क्षेत्र पर्यटन उद्योग में पीछे रह जाते है। इतना ही नहीं अपितु अपना वर्तमान बाजार भी खो बैठने की आशंका से ग्रस्त रहते हैं। परिवहन सुविधा, होटल, लॉज, हवाई अडड़ा एवं सैरगाह इत्यादि के विस्तार द्वारा मुलभूत सुविधाओं में वृद्धि करके हम किसी क्षेत्र में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा दे सकते हैं।

छत्तीसगढ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य, धार्मिक, पुरातात्विक, एतिहासिक तथा सांस्कृतिक महत्व के पर्यटन स्थलों तथा परंपरागत महोत्सवों की वजह से पर्यटको की आकर्षण का केन्द्र रही है। अत: छत्तीसगढ़ शासन उपर्युक्त तथ्यों में ध्यान देकर अपने पर्यटन उद्योग में बेहतर स्थिति दर्ज करा सकता है। इस क्षेत्र सरकार लगातार प्रयास कर रहा है।

छत्तीसगढ़ में पर्यटन विकास की संभावनाओं को निम्न कारकों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है :

1. ऐतिहासिक कारक

ऐतिहासिक महत्व के स्थल अपने आप में पर्यटन के संभावनायें लिए हुए है। जैसे- एक ताजमहल होने से आगरा विश्व प्रसिद्ध शहर हो गया है। छत्तीसगढ़ में ऐसे अनेक एतिहासिक स्थल है, जो अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की योग्यता रखते हैं। यह अंचल प्राकृतिक दृष्टि से सुरक्षित होने के कारण बाहर के आगंतुकों के लिए दुर्गम रहा है। यह क्षेत्र प्राचीन भारतीय साहित्य में दक्षिण कोसल नाम से उल्लेखित है। छत्तीसगढ़ का नामकरण इस क्षेत्र में स्थित 36 किलों (गढ़) के कारण पड़ा।

छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में अनेक राजवंशो का योगदान रहा है। इसका इतिहास पाषण युग से प्रारंभ होता है। इस क्षेत्र का वर्णन रामायण एवं महाभारत में भी मिलता है। जिसका शिवरीनारायण, खरौद, सिरपुर, तुरतुरिया आदि उदाहरण क्षेत्र है। यहाँ शैव, वैष्णव एवं बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक राजवशों के स्मारक अवशेष तथा काष्ट लेख मिलें है। इसमें मुख्य रूप से रामगढ़ की पहाड़ी की गुफा में बौद्धकालीन भित्तीलेख, सीताबेंगरा एवं जोगीमारा गुफा में अशोक कालीन भित्तिलेख, सक्ति के पास गुंजी से प्राप्त शिलालेख सातवाहन शासकों का एवं दुर्ग जिले की बानबरद नामक स्थान से गुप्तकालीन मुद्राओं की प्राप्ति ऐतिहासिकता के प्रदर्शक है।

वहीं खरौद, तुमान, रतनपुर, रायपुर कलचुरी कालीन नगर है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के राजवंशों में रायपुर की कलचुरी, बस्तर का छिंदक नागवंश, कवर्धा का फणिनागवंश, कांकेर का सोमवंश इत्यादि के शासन का वर्णन विस्तार से मिलता है। इस अंचल में कुल संग्राम, संघर्ष और विद्रोह भी हुए जिसका छत्तीसगढ़ के इतिहास में वर्णन है।

इस तरह छत्तीसगढ़ पुरातात्विक सम्पदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ मंदिर वास्तु का प्रारंभ 5वी शताब्दी में हो गया था तथा 9वीं शताब्दी तक ईंटो की निर्माण की एक श्रृंखला दिखाई पड़ती है। छत्तीसगढ़ के ईटों के मंदिर में सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर भारतीय स्थापत्य कला की एक अनुपम उदाहरण मानी जाती है।

कल्चुरी एवं समकालीन राजवंशो ने ज्यादातर पाषण द्वारा मंदिरों का निर्माण कराया था। ये मंदिर मध्यकालीन कल्चुरी काल के पश्चात् वास्तुकला निर्माण में ह्वास दिखाई पड़ती है। परंतु रायपुर की दुधाधारी मंदिर इस काल का उत्कृष्ट उदाहरण है।

अतः इससे स्पष्ट है कि संपुर्ण अंचल में पुरातात्विक महत्व के अनेक सामग्री बिखरी पड़ी है। जो इस तथ्य के परिचायक है कि छत्तीसगढ़ का भारतीय पुरातत्व के विभिन्न क्षेत्र जैसे स्थापत्य मुद्रालेख, भित्तिलेख, आदि की दृष्टि से विशिष्ट स्थान है जो पर्यटकों को आकर्षित करने का एक बड़ा सहयोगी कारक है।

2. प्राकृतिक कारक

छत्तीसगढ़ का इतिहास इसके भूगोल से अधिक प्रभावित रहा है। यह अंचल एक विशिष्ट भौगोलिक स्थिति वाला क्षेत्र है। यहाँ यदि एक ओर ऊँची-ऊँची पर्वतमालाएँ है तो दूसरी ओर उनसे निकलने वाली नदियां एवं सिंचित उपजाऊ जमीन है। यह वनांचल अपनी उर्वरा शक्ति और खनिज सम्पदा को अपने अंतराल में छिपाये हुए सदैव विदेशियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है।

यहाँ की सर्वप्रमुख नदी महानदी (चित्रोत्पला) के तट पर प्राचीन सभ्यताओं का उदय हुआ है, जिनके अवशेषों के प्राचीन गौरव गाथा का अध्ययन और आन्नद लेने पर्यटक भारी संख्या में इन क्षेत्रों पर आते हैं। छत्तीसगढ़ के उत्तरी तथा पश्चिमी भाग में मैकल की पर्वत श्रृंखला तथा पूर्वी भाग में उड़ीसा की छोटी-छोटी पहाड़ियाँ है। ईशान सरगुजा की उच्चभूमि और आग्नेय के सिहावा पर्वत श्रृंग उल्लेखनीय है। जो प्राचीन गाथाओं के ऐतिहासिक क्षेत्र होने से लोगों की आकर्षण का केन्द्र रहा है।

यह अंचल अपनी अनुपम प्रकृति सुषमा से युग-युग से लोगो को अभिभूत करता रहा है। प्राचीन साहित्यों में यहाँ की प्राकृतिक छटा का अत्यंत मनोरम वर्णन मिलता है।

सामान्य रूप से यहाँ जंगलों की अधिकता है। जहाँ जंगली जानवर स्वतंत्र विचरण करते है। यह वन क्षेत्र मानव की गतिशील जीवन की महत्वाकांक्षाओं, विजय पराजय उत्थान-पतन, और आर्य-अनार्य की संघर्ष एवं संस्कृतियों का अद्भुत रोचक इतिहास अपने आप में समेटे हुए‌ है। साथ ही यहां की वन्य जीव जैसे शेर, चीता, वनभैंसा, कोटरी, सांभर, चीतल, हाथी, कांटेदार साही, सोन कुत्ते, सोन चिड़िया तथा गाने वाली मैना सदैव पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है। इस अंचल में स्थित मैनपाट, जशपुर पाठ तथा मैकल, रामगढ तथा अबुझमाड़ की सघन वनाच्छादित पहाडी, नदियों से निर्मात केन्दई अमृतधारा, कोटरी एवं चित्रकूट जलप्रपात, इन्द्रावती, कांगेर व गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान एवं अन्य अभ्यारण्य तथा गुफायें व प्राचीन शैल सदैव पर्यटकों को आकर्षित करती रही है।

अतः पर्यटकों को अधिक आकर्षित करने के लिए इन पर्यटन स्थल के विशिष्ट स्वरूप को नष्ट न होने दिया जाये।

3. सामाजिक सांस्कृतिक कारक

उद्योग के रूप में पर्यटन का विकास में सामाजिक कारक यातायात मनोरंजन तथा अवकाश के प्रति समाज का रवैया पर निर्भर करता है। परंपरागत तौर पर पर्यटन को एक विलासिता माना जाता है। जिसे केवल अमीर व्यक्ति भोग सकता है। परंतु इसकी अवधारणा आज पुरी तरह से बदल गयी है। आज का यात्री अपेक्षाकृत सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक परिप्रेक्ष्य से यात्रा करता है, और उसकी रुचियाँ भी अलग-अलग होती है ।

पर्यटन के तीन महत्वपूर्ण तत्व यातायात, स्थान एवं आवास के साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को भी जोड़ दिया जाये तो पर्यटकों को और अधिक आकर्षित करते है। पर्यटन हमेशा से दो राज्यों, राष्ट्रों के मध्य सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा विकास का माध्यम रहा है। इससे सौहाद्रपूर्ण मैत्री, शिक्षा एवं संबंधों में विकास होता है।

छत्तीसगढ़ हजारों वर्षों के अपने मूल संस्कृति को छिपाये हुऐ है। यह आर्य संस्कृति से प्रभावित होकर यहाँ की मूल अनार्य संस्कृति मिश्रीत हो गयी है। यहाँ बोद्ध, जैन, मुगल, मराठा व ब्रिटिश से लेकर आधुनिक युग की संस्कृति समन्वित है। क्रमिक विकास की कड़ी से यहाँ की संस्कृति व्यपाक रूप धारण करती जा रही है। यहाँ ही संस्कृति को विभिन्न विदेशी विद्वान जैसे व्हेनसांग, प्लांट, अलेक्जेण्डर कनिहांग, मि. फारेस्ट टेवलर ने अति महत्वपूर्ण संस्कृति मांना है।

इस तरह देखा जाये तो छत्तीसगढ़ अपनी सामाजिक व्यवस्था व संस्कृति के कारण सदैव बाहरी लोगों को आकर्षित करती रही है।

हमारा वर्तमान छत्तीसगढ़ अपने सांस्कृतिक पुरावैभव का ही उज्जवल भविष्य है। महाप्रभु वल्ल्भाचार्य की जन्म स्थली चम्पारण्य, दामाखेडा कबीर पंथियों का धर्म नगर व रायपुर का महातीर्थ शद्राणी दरबार इसी भव्य परंपरा का उत्कृष्ट प्रतिपूर्ति है जिसको देखने के लिए सहज ही श्रद्धालुओं का ध्यान आकृष्ट होता है।

इस वनांचल की अपनी विशिष्ट संस्कृति है। यहाँ के लोगों का जीवन तीन तत्वों से ओत-प्रोत है पहला प्रकृति प्रेम, दुसरा कठोर श्रम तथा तीसरा सरल स्वभाव। यही तीन तत्व ही उनकी संस्कृति के मूल स्रोत है, जो पर्यटकों को यहाँ आकर्षित करती है।

जब सजावट के रूप में लोकशिल्प की बात हो तो बस्तर की कलाकृतियों का स्थान महत्वपूर्ण होता है। यहाँ की लोकशिल्प में मोहनजोदड़ों के कला तत्वों के दर्शन होते हैं।

अतः छत्तीसगढ़ की सामाजिक व्यवस्था एवं सांस्कृतिक पुरावैभव आज पर्यटन को एक उद्योग के रूप में विकसित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

4. आर्थिक कारक

एक अनुमान के अनुसार हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में घरेलु तथा अंतराष्ट्रीय पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है। इससे रोजगार का भी सृजन होता है ।

इस अंचल में उच्च कोटि के खनिजों के कारण ही भिलाई, कोरबा और बैलाडीला आदि क्षेत्र विकसित हुए हैं। यहाँ खनिजों की संख्या और भण्डार इतनी अधिक है कि छत्तीसगढ़ देश के अन्य राज्यों में आगे हो रहा है। साथ ही यहाँ औद्योगिक विकास का श्री गणेश राजनांदगाँव के सूती वस्त्र निर्माण उद्योग की स्थापना से हुआ, इसके बाद भिलाई में इस्पात कारखाना, कोरबा ताप संयंत्र व एल्युमिनियम फेक्ट्री तथा कबीरधाम का शक्कर कारखाना जैसे प्रमुख उद्योग की स्थाना हुई है। साथ ही रायपुर – बिलासपुर के मध्य सीमेन्ट कारखानों की एक श्रृंखला विकसित हुई है। सभी आर्थिक तथ्य पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन रहा है।

5. आधारभूत सुविधायें

पर्यटन केन्द्र विकास की प्रबल संभावनाओं के बावजूद आधारभूत सुविधाओं की कमी के कारण न केवल यह उद्योग तेजी से प्रगति करने में असमर्थ रहता है, अपितु अपना वर्तमान बाजार भी खो बैठने की आशंका से ग्रसित रहता है। छत्तीसगढ़ का ही नहीं वरन् भारत का भी पर्यटन विकास इस दृष्टि से पिछड़ा होने का महत्वपूर्ण कारण भी यहीं है। अतः आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करके पर्यटन को एक उद्योग का रूप दिया जा सकता है।

वर्तमान में पर्यटन विकास के लिए यातायात की सुविधा प्रमुख रूप से आवश्यक होती है। वैसे तो प्राचीन काल से भारत के अन्य क्षेत्रों की भाँति छत्तीसगढ़ में भी यातायत की सुविधा के लिए बैलगाड़ी और भैंसागाड़ी का उपयोग होता रहा है। आज 20वीं सदी के वैज्ञानिक युग में भी यहाँ रेलगाड़ी, मोटर बसें, जीप, स्कुटर एवं हवाई यातायात की व्यापक व्यवस्था हो गयी है। इसके बाद भी यहाँ गांवों में करीब 80% माल की ढुलाई प्राचीन साधन से होती है। छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता के पहले यातायात के सुविधा के लिए सड़कों की संख्या नगण्य थी। इसका ज्ञान टेम्पल रिपोर्ट से मिलता है। स्वतंत्रता के पश्चात् यहाँ सड़क निर्माण में कुछ वृद्धि हुई। उस समय रायपुर से रतनपुर, रनतपुर से अमरकंटक जैसे कुछ महत्वपूर्ण सड़के थी, परंतु उनका पूर्ण विकास नहीं होने के कारण असुरक्षित थे। जंगली जानवरों की अधिकता और पक्के पुल न होने के कारण इनसे होकर आना-जाना असुविधाजनक था। इसलिए पर्यटन क्षेत्रों का पूर्णतः विकास नहीं हो सकता था।

9 मई 1887 को बंगाल-नागपुर रेलवे की शुरूआत हुई। बाद में यह द.पू. रेलवे में शामिल हो गया और इसी नाम से यहाँ की रेल व्यवस्था विभिन्न अंचलों में प्रशरत हुई। तब से छत्तीसगढ़ के विभिन्न भागों में इसका प्रसार होने पर रायगढ, जांजगीर, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, राजनांदगाँव, जगदलपुर, दण्तेवाडा एक दुसरे के संपर्क में आने लगे और लोग पर्यटन हेतु भी इन क्षेत्रों में पहुंचने लगे । साथ ही यहाँ के प्रमुख नगर जैसे भिलाई, रायपुर, बिलासपुर, रायगढ, जगदलपुर में वायुमार्ग का विकास होने से पर्यटन उद्योग में तेजी से विकास हुआ है।

वर्तमान छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक अतीत की ओर दृष्टिगत करने से हमे ज्ञात होता है कि यह क्षेत्र शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति, पुरातत्व व धर्म आदि तथ्यों में उतना ही समुन्नत मिलता है जितना उत्तर भारत के अन्य क्षेत्र। यहाँ कमी है तो सिर्फ कुछ आधारभूत सुविधाओं एवं व्यवस्था की। यहाँ पर्यटन केन्द्रों को रेलमार्ग से जोड़नें, पर्यटन ट्रेनों की संख्या बढ़ाने तथा सड़कों की दशा अच्छी बनाने की भी आवश्कता है।

इस समय बहुत से लोकप्रिय पर्यटन केन्द्रों पर न्युनतम आधारभूत सुविधाओं जैसे – होटल, धर्मशाला, सैरगाह बिजली पानी भी नहीं है। इन सभी सुविधाओं की व्यवस्था कर छत्तीसगढ़ में पर्यटन को एक उद्योग का पूर्ण रूप प्रदान किया जा सकता है ।

6. अन्य सुविधायें

सदियों से भारत को पर्यटकों के बीच पहचान स्मारकों, मंदिरों, पवित्र घाटों एवं विविध संस्कृतियों से भरे एक देश के रूप में कराई जाती रही है। विश्व के सुन्दरतम् देशों में भारत 5000 साल से अधिक पुरानी सभ्यता का धनी है। देश में पर्वतों, रेगिस्तानों, समुद्रतटों, नदियों, जंगलों, वनस्पत्तियों एवं जीव-जन्तुओं की बहुतायत संख्या है। यहाँ की देवी-देवता कठिनतम एवं प्रतिकूलतम स्थानों में रहने के आदि है। भारत की महान नदियाँ एवं पर्वत हमेशा से पवित्र तीर्थ स्थल एवं पूजनीय माने जाते रहे हैं। अतः सदियों से यह पर्यटकों की मनोहारी क्षेत्र रहा है, अतः भारत में पर्यटन का इतिहास काफी पुराना है।

छत्तीसगढ़ की धार्मिक परंपरा पर्यटको को अत्यधिक प्रभावित करता है। छत्तीसगढ़ की जनता को धार्मिक चेतना ऋषि-महर्षि एवं संत महात्माओं से पैतृक सम्पत्ति के रूप में मिली है। पर युग-युग के परिवेश में यहाँ की धार्मिक प्रवृत्ति का स्वरूप भिन्न होता गया है। यहाँ प्रारंभ में बूढ़ादेव पुजक गोंड के पश्चात् क्रमश: शक्ति पुजा, वैष्णव धर्म, शव धर्म, बोद्ध धर्म, जैन धर्म आदि के धर्मावलम्बी मिलते है। इसी प्रकार यहाँ कबीर पंथ, रेदास पंथ, सतनाम पंथ के अनुयायी भी निवास करते है। छत्तीसगढ़ में घासीदास ने “सतनाम” शब्द को सत्यता और पवित्रता का रूप बताया तथा एक नये पंथ के रूप में सतनामी पंथ चलाया इनका जन्म गिरौदपुरी के एक हरिजन परिवार में 1756 के आसपास हुआ था।

इस प्रकार हम देखते है कि छत्तीसगढ़ धर्म के प्रचार में अग्रगण्य रहा है। यहाँ कई धार्मिक संस्थाऐं है। छत्तीसगढ़ की सभी धर्मों में सहिष्णुता एवं उदारता को प्रमुख स्थान दिया गया है । अत: धार्मिक केन्द्र प्राचीन काल से ही पर्यटन के केन्द्र रहे है।

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए संरचनात्मक ढाँचे में सुधार करना आवश्यक है। अत: इसके लिए आवश्यक है कि स्वच्छ जल, स्वच्छता एवं सीवर आदि की बुनियादी सुविधाओं का विस्तार किया जाये। पर्यटकों की ठहरने के लिए होटल, धर्मशाला, लॉज तथा सैरगाह आदि का निर्माण किया जाये। पर्यटन स्थलों को स्वच्छ रखा जाये तथा उस तक पहुंचने वाले रास्ते को पर्यावरणीय रूप प्रदान कर स्वच्छ रखा जाये। अतः पर्यावरणीय स्वच्छता पर्यटन विकास के लिए एक महत्पूवर्ण कारक है।

इनके अतिरिक्त राज्य शासन द्वारा पर्यटकों को विशेष सुविधा मुहैया कराये जाने चाहिए तथा संचार एवं सूचना तकनीक में विस्तार किया जाना चाहिए जिससे की छत्तीसगढ़ पर्यटकों की आकर्षण का केन्द्र बन जायें ।

निष्कर्ष तौर पर यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में उपलब्ध युवा शक्ति तथा पर्यटन स्थलों की विविधता को देखते हुए इक्कीसवी सदी में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में उभरने की पूर्ण संभावना है। जिसके परिणास्वरूप आने वाले वर्षों में पर्यटन उद्योग, राज्य के आर्थिक विकास के साथ-साथ उसके सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

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